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هذا الحبُّ تعشقُهُ النساء |
مشهدٌ |
يختصرُّ الحبَّ |
ربيعاً أبديَّاً |
ويُناضِلْ |
ونداءٌ |
خلفَ لون ٍ |
مغربيٍّ قمريٍّ |
حرثَ الدُّنيا |
زلازلْ |
اغربي عنِّي |
فلنْ يسكنَ |
عشقي |
بينَ هاتيكَ |
المهازلْ |
لستُ كلباً |
كلّما حرَّكهُ |
الجنسُ |
يُقاتلْ |
لستُ في |
زيِّكِ |
وحياً للرذائلْ |
لستُ في |
عريكِ |
أنهاراً تُغازلْ |
لستُ في |
فستانِكِ الأحمرِ |
عطراً يتمشَّى |
بالمشاكلْ |
أشرقي نحوي |
فأنتِ امرأةٌ أخرى |
تُسمَّى |
في شراييني |
فضائل |
أشرقي أحلى |
سماء ٍ |
تتسامى |
بضياء ِ الأبجديَّة |
افتحي |
الحاضرَ درباً |
ووصولاً |
للنقاطِ الذهبيَّة ْ |
وأغيثي |
كلَّ فجر ٍ |
وأميتي |
في مراياكِ |
العصورَ الجاهليَّة |
وأقيمي |
بين أضلاعي |
ربيعاً |
يتهجَّى |
بين عينيكِ |
الحياة َ الأبديَّةْ |
كلُّ نبض ٍ |
جاءَ مِن قلبِكِ |
نحوي |
فهوَ في قلبي |
هديَّةْ |
وازرعيني |
ألفَ حلٍّ |
حينما تُولَدُ |
للحبِّ |
قضيَّة |
واذكريني |
فشموعي |
لمْ تذبْ فيكِ |
سنيناً عبثيَّة |
لستُ أهواكِ |
ابتذالاً |
بالمخازي |
يتحلَّى |
لستُ أهواكِ |
سوى |
وحي ِ جمال ٍ |
قلبَ الكونَ |
عصافيراً و أمواجاً |
وأحضاناً |
وأزهاراً و فُلَّى |
أنتِ فجري |
حينما أحضنُ فيهِ |
صلواتي |
يتجلَّى |
كيف لا يظهرُ هذا |
وسماواتي |
على ثغركِ |
تُتلى |
كلُّ شيءٍ |
فيكِ قدْ |
أمسى جميلاً |
وعلى جوهركِ |
السَّاطع ِ |
أحلى |
كيفَ لا تعلو |
حروفي |
وهواكِ |
المستوى القادم ُ |
في التعبيرِ |
أعلى |
وخطاكِ العطرُ |
في الأنفاس ِ |
يا أسطورة َ الأزهار ِ |
أغلى |
أنتِ طهرٌ |
أبديٌّ |
أسرجَ الكونَ |
حجيجاً |
وبقلبي |
صامَ إيماناً |
وصلَّى |
هكذا الحبُّ أراهُ |
منبعاً |
في شفتينا |
يتسلسلْ |
وعلى |
مبسمِكِ الفاتِن ِ |
أجملْ |
وعلى |
صدرِكِ فاضتْ |
أجملُ الأشعارِ |
منهلْ |
وعلى صدري |
عروجٌ |
بينَ عينيكِ |
تنقَّلْ |
فاحملي |
عالمَ قلبي |
بينَ أصدائِكِ |
مشعلْ |
مِنْ دمي |
يخرجُ شعرٌ |
والهوى |
نحوَكِ مدخلْ |
وكلانا |
أجملُ الفنِّ |
تشكِّلْ |
وعلى أحسن ِ |
ما فيكِ |
وجودي |
قدْ تغلغلْ |
اقلبي ضعفَكِ |
في حضني |
وفي |
مشرق ِ آمالي |
وفي |
زمزم ِ أفعالي |
قممْ |
ظلِّلي |
كلَّ تفاصيلي |
هممْ |
وانهضي |
في لغةِ الحبِّ |
وفي كلِّ |
انبعاثاتِ تلاقينا |
أممْ |
كفُّكِ الأولى |
إباءٌ |
وبطولاتٌ |
ونصرٌ |
كفُّكِ الأخرى |
كرمْ |
كلُّ معنى |
لا يُجاريكِ |
ارتفاعاً عالميَّاً |
قدْ توارى |
وانهزمْ |
كلُّ مَنْ شبَّ |
هيَاماً |
فيكِ قدْ كوَّنَهُ |
الحبُّ قيمْ |
حسنكِ الرائعُ |
عزفٌ |
وأنا الشاعرُ |
في العزفِ |
نغمْ |
وأنا مليونُ جزءٍ |
وبأجزائِكِ |
يا سيِّدةَ الحُسْن ِ |
التحمْ |
حينما |
صرتِ بقربي |
صرتُ تعريفَ |
وجودي الذهبي |
أنتِ قلبي |
نصفُهُ الأوَّلُ |
أمِّي |
نصفُهُ الثاني |
أبي |
أنتِ يا سيِّدةَ الحبِّ |
كتابٌ |
وأنا |
في لغةِ الطيش ِ |
هو السَّطرُ |
الأبي |
أنتِ مرآتي |
التي أنظرُها |
أحلى جَمَال ٍ |
وعليها |
يظهرُ الفجرُ |
ويُمحَى غضبي |
أنا في وجهِكِ |
غيثٌ |
دائماً يُقرُأُ |
فيهِ أدبي |
ذاكَ حبِّي |
فخذيهِ |
عنباً يُزهرُ |
بينَ العِنبِ |
واجعلي |
كلَّ لياليكِ |
بقُربي |
وارسميني |
فوقَ خديكِ |
هلالاً |
واكتبي |
كلَّ مَنْ |
لمْ يعرفِ الحبَّ |
نقيَّاً |
فهوَ مِنْ باب ٍ |
إلى بابٍ |
غبي |