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سماء من العشب، |
واليتم، |
والبركات، |
رماد |
يحاصرني من جميع الجهات |
سحب مقفرة، |
تظللني |
وأنا أدخل |
المقبرة |
تلمست دربي |
لا العشب يعرف |
أين خبأ المليكة، |
لا الرمل يعرف |
أين أريكتها، |
من يشم حرائق روحي، |
يحررني |
من دخان ثيابي؟ |
حنيني |
مشتبك |
ودمي شرك |
لطيور الأسى، |
والتراب... |
وتتسع المقبرة |
ترتب أحجارها، |
وتنادم آبارها المقفرة، |
توسعها تارة |
وتضيقها تارة |
وعلى بعضها البعض تتكئ |
ومن طرف العمر |
تبتدئ... |
سماء من اليتم تجتاحني، |
وسماء من العشب |
تحنو عليّ |
تبللني بالندى |
والبشاشة، |
يصعد من خشب الروح |
غيم جديد، |
قصائد كالشذروانات، |
شذر، |
شذى، |
وسرير لسيدة |
ملء روحي، |
أرى شجرا، |
يتهجد، |
نهرا قديما |
يغني: سرير المليكة |
مملكة |
من حنين وأتربة، |
قمر ضائع |
فوق صمت المياه، |
أرائك |
منذورة لطيور الاله |
سرير المليكة |
مملكة |
من هوى |
لا يحد مداه....... |